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जब पिता पुत्री संबंध देख, रो पड़ी सभी आंखें !!

जब पिता पुत्री संबंध देख, रो पड़ी सभी आंखें !!

मोगा 1 दिसंबर (मुनीश जिन्दल)

“घर में बेटी का जनम होता है, तो पिता की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता है। और फिर वही बच्ची धीरे धीरे अपने बाप की गोद में लोरियां लेती हुई, इतनी बड़ी हो जाती है कि एक दिन उसका पराए घर जाने का समय आ जाता है। विवाह वाले दिन, सबको रुलाने वाला, पिता पुत्री का बिछौड़ा” जी हां, यही विषय था डी.एन. मॉडल सीनियर सेकेंडरी स्कूल के वार्षिक दिवस समागम में विद्यार्थियों द्वारा दिखाए गए एक नाटक का। जिसने समूची उपस्थिति को रुला दिया। 

इस तस्वीर में, विवाह के समय, पिता-पुत्री विलाप करते हुए दिखाई दे रहे हैं। (छाया: सोनू) 

पिता पुत्री संबंधों पर दर्शाये गए नाटक की एक अन्य झलक का दृश्य। (छाया : सोनू जैसवाल)

इस प्रभावशाली नाटक में विद्यार्थियों ने अपनी कला के माध्यम से पिता पुत्री संबंधों को बाखूबी दर्शाया कि किस प्रकार जब एक बच्ची, एक घर में जनम लेती है, तो बाप की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता। और जैसे जैसे समय का पहिया आगे बढ़ता है, वो बच्ची भी बड़ी होती है। और धीरे धीरे वो बच्ची अपने बाप की गोद में लोरियां सुनते सुनते, गोद से उतरकर जमीन पर अपने पांवों पर चलने लगती है। फिर पहले स्कूल की पढ़ाई, फिर कालेज की पढ़ाई और अंत में यूनिवर्सिटी की पढ़ाई करते करते एक दिन वो इतनी बड़ी हो जाती है कि उसका पराए घर जाने का समय आ जाता है। फिर आता है उसके विवाह का दिन। और कहीं से एक नौजवान आकर उनकी लाड़ली पुत्री का हाथ थाम कर एक बाप के घर की रौनक को अपने साथ ले जाता है। और एक पिता की पुत्री को पिता से दूर कर देता है। फिर वही बच्ची जब कभी एक पुलिस अधिकारी के रूप में, और कभी एक पायलट के रूप में तरक्की करती है, तो पिता की ख़ुशी का फिर से कोई ठिकाना नहीं रहता है। जी हां पिता पुत्री संबंधों को दर्शाता, यही विषय था, स्कूल विद्यार्थियों द्वारा मंचन किए गए नाटक का। जिसे देख खचा खच भरे समारोह स्थल में शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा होगा, जो अपने रोने पर काबू पा सका हो। सभी आँखें रो रही थी। 
और फिर जैसे ही पर्दा गिरा और हाल की लाइटें जगी, तो लोगों ने अपने दाएं बाएं देखते हुए चोरी चोरी अपनी अपनी आँखें पोंछी और यकायक हाल तालियों की आवाज सो गूँज उठा। और वो तालियों की गूँज ही इस बात की गवाह थी कि उपस्थिति को नाटक कितना पसंद आया और बेशक तालियों की गड़गड़ाहट ही एक कलाकार के लिए सुख का क्षण होता है, कि उसकी प्रस्तुति को, उसकी कला को, उनके नाटक के विषय को, लोगों ने कितना पसंद किया है।

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