मोगा 15 नवम्बर (मुनीष जिन्दल)
कार्तिक महीने के अंतिम दिन स्थानीय गीता भवन मंदिर में श्रद्धालुओं में ख़ासा उत्साह देखने को मिला। गीता भवन मोगा के गद्दी नशीन स्वामी वेदांत प्रकाश जी की निगरानी में हुए एक साधारण धार्मिक कार्यकर्म में सुबह सर्वप्रथम तुलसी पूजन हुआ। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने खासकर महिलाओं ने भाग लिया। गीता भवन की इस्री सभा ने अपने स्तर पर संयुक्त रूप से तुलसी मां की साड़ी, सुहाग का सामन, पाजेब, चुटकी, सिंगार का सामन व मिठाई आदि लाकर तुलसी महारानी का पूजन किया। पूजा अर्चना करवाने की रस्म राम पंडित जी ने मंत्रोउच्चारण के साथ विधि पूर्वक करवाई।
स्वामी वेदांत प्रकाश जी ने बताया कि आज के दिन का विशेष महत्व है। आज के दिन तीर्थ स्थलों में जाकर गंगा स्नान का भी बहुत महत्व है। इसके साथ ही स्वामी जी ने आज के दिन तीर्थों स्थलों, जैसे मंदिर व गुरुद्वारों इतियादी में जाकर दान करने पर विशेष बल दिया। उन्होंने कहा कि आज के दिन दान करने से इसका कई गुना फल प्राप्त होता है। कार्तिक महीने का महत्व बताते हुए स्वामी वेदांत प्रकाश जी ने कहा कि हिंदू पंचांग के अनुसार साल का आठवां महीना कार्तिक महीना होता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा कहलाती है। प्रत्येक वर्ष पंद्रह पूर्णिमाएं होती हैं। जब अधिक मास या मलमास आता है, तब इनकी संख्या बढ़कर सोलह हो जाती है। सृष्टि के आरंभ से ही यह तिथि बड़ी ही खास रही है। पुराणों में इस दिन स्नान, व्रत करना व तप की दृष्टि से मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। इसका महत्व सिर्फ वैष्णव भक्तों के लिए ही नहीं शैव भक्तों और सिख धर्म के लिए भी बहुत ज्यादा है। विष्णु के भक्तों के लिए यह दिन इसलिए खास है क्योंकि भगवान विष्णु का पहला अवतार इसी दिन हुआ था। प्रथम अवतार में भगवान विष्णु मत्स्य यानी मछली के रूप में थे। भगवान को यह अवतार वेदों की रक्षा, प्रलय के अंत तक सप्तऋषियों, विभिन्न अनाजों एवं राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था। इससे सृष्टि का निर्माण कार्य फिर से आसान हुआ था। शिव कथा के अनुसार, इसी दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का संहार किया था। जिससे वह त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए। इससे देवगण बहुत प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने शिव जी को त्रिपुरारी नाम दिया। जो शिव के अनेक नामों में से एक है। इसलिए इसे ‘त्रिपुरी पूर्णिमा’ भी कहते हैं।
इसी तरह सिख धर्म में कार्तिक पूर्णिमा के दिन को प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि इसी दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म हुआ था। इस दिन सिख सम्प्रदाय के अनुयाई सुबह स्नान कर गुरुद्वारों में जाकर गुरुबाणी सुनते हैं और गुरु नानक देव जी के बताए रास्ते पर चलने की सौगंध लेते हैं। इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है। इस तरह यह दिन एक नहीं बल्कि कई वजहों से खास है। इस दिन गंगा-स्नान, दीपदान, अन्य दानों आदि का विशेष महत्त्व है। इस दिन क्षीर सागर दान का अनंत महत्व है। क्षीरसागर का दान 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोड़कर किया जाता है। यह उत्सव दीपावली की भांति दीप जलाकर सायंकाल में मनाया जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है। इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो, तो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा, इन छह कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी प्रसन्न होते हैं और उनका शुभ आशीर्वाद प्राप्त होता है।
गीता भवन के गद्दी नशीन स्वामी वेदांत प्रकाश जी के इलावा ट्रस्ट के चेयरमैन सुनील गर्ग, पुष्पा, नीना सिंघल, प्रतिभा, अनीता मित्तल, मीनू, कमलेश, परीक्षा, सहित अन्य महिला श्रद्धालुओं ने तुलसी महारानी जी की पूजा अर्चना की।